शब्द का अर्थ
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धि :
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प्रत्य० [सं०√धा (धारण)+कि (उत्तर पद होने पर)] जो समस्त पदों के अंत में लगकर निधि या भंडार का अर्थ देता है। जैसे—जलधि, वारिधि आदि। |
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समानार्थी शब्द-
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धिआ :
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स्त्री० [सं० दुहिता, प्रा० धीआ] १. पुत्री। बेटी। २. कन्या। लड़की। |
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धिआन :
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पुं०=ध्यान।a |
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धिआना :
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स०=ध्याना (ध्यान करना)। |
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धिक :
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अव्य०=धिक्। |
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धिकना :
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अ० [सं० दग्ध या हिं० दहकना] १. आग का अच्छी तरह दहकना या जलना। २. आग की गरमी से किसी चीज का तपकर लाल होना। |
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धिकलना :
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स०=धकेलना। |
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धिकाना :
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स० [हिं० धिकाना का स०] १. आग को तेजी से जलाने की क्रिया करना। दहकाना। २. आग में तपकर खूब लाल करना। |
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धिक् :
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अव्य० [सं०√धक्क् (धरण या नाश)+डिकन्] घृणा और तिरस्कारपूर्वक भर्त्सना करने का शब्द। लानत है। जैसे—धिक् तुमने ऐसा दुष्कर्म किया। |
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धिक्-पारुष्य :
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पुं० [सं० व्यस्त पद] धिक्कार। भर्त्सना। |
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धिक्कार :
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स्त्री० [सं० धिक्-कार ष० त०] बहुत ही बुरा काम करनेवाले अथवा अपने कर्तव्य का निर्वाह न करनेवाले व्यक्ति का अपमान सूचक शब्दों में की जाने वाली भर्त्सना। लानत। विशेष—संस्कृत में धिक्कार पुं० है। अव्य० दे० ‘धिक’। |
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धिक्कारना :
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स० [सं० धिक्कार] अनुचित या दूषित काम करनेवाले की कठोर तथा अपमान-सूचक शब्दों में निन्दा करना। जैसे—इस देश-द्रोही को देश एक स्वर में धिक्कार रहा है। |
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धिक्कृत :
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भू० कृ० [सं० धिक्√कृ (करना)+क्त] जो धिक्कारा गया हो। जिसे ‘धिक’ कहा गया हो। |
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धिंग :
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स्त्री०=धींगा-धींगी।a |
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धिग :
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अव्य०=‘धिक’। पुं०=धिक्कार। |
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धिंगरा :
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पुं०=धींगड़ा।a |
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धिंगा :
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पुं० [सं० दृढ़ांग] १. उपद्रवी। शरारती। २. दुष्ट पाजी। बदमाश। ३. निर्लज्ज। बेशरम। |
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धिंगा-धिंगी :
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स्त्री०=धींगा-धींगी। |
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धिंगाई :
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स्त्री० [हिं० धिंगा] १. धींगापन। धींगा-मस्ती। २. उपद्रव। शरारत। ३. पाजीपन। बदमाशी। ४. निर्लज्जता। बेशरमी। |
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धिंगाना :
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अ० [हिं० धिंगा] धींगा-धिंगी करना। स० किसी को धींगा-धींगी करने में प्रवृत्त करना।a |
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धिंगी :
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स्त्री० [सं० दृढांगी] १. बदमाश स्त्री। दुश्चरित्रा। २. निर्लज्ज स्त्री। ३. दे० ‘धिंगाई’। |
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धिग्दंड :
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पुं० [सं० धिक्-दंड मध्य० स०] धिक्कारपूर्वक भर्त्सना के रूप में (किसी को) दिया जाने वाला दंड। जैसे—पंचों ने उसे धिग्दंड दोकर छोड़ दिया। |
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धिग्वण :
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पुं० [सं०] ब्राह्मण पिता और अयोगवी माता से उत्पन्न एक प्राचीन संकर जाति। |
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धिठाई :
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स्त्री०=ढिठाई।a |
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धिमचा :
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पुं० [देश०] एक तरह का इमली का पेड़। |
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धिय :
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स्त्री० [सं० दुहिता] १. पुत्री। बेटी। २. कन्या। लड़की। |
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धिया :
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स्त्री०=धिय। स्त्री०=धिक्कार। (क्व०)a |
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धिया-वसु :
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पुं० [सं० अलुक् समास] वैदिक युग के एक देवता जो ‘धी’ अर्थात बुद्धि के अधिष्ठाता माने जाते थे, और ‘सरस्वती’ के वर्ग के थे। |
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धियान :
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पुं०=ध्यान।b |
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धियाना :
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अ०=ध्याना (ध्यान करना)। |
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धियानी :
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वि०=ध्यानी।b |
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धियांपति :
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पुं० [सं०] बृहस्पति। |
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धियारी :
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स्त्री०=धी (पुत्री)। |
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धिरकार :
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स्त्री०=धिक्कार। |
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धिरयना :
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स०=धिरवना।b |
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धिरवना :
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स०=धिराना। |
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धिराना :
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स० [सं० धर्षण] १. भयभीत करना। डराना। २. धम-काना। स० [सं० धैर्य्य] १. धीरज दिलाना। २. शांत करना। अ० १. धीरज रखना। २. शांत होना। अ० [सं० धीर] १. मंद पड़ना। धीमा होना। उदा०—यों कहि धिरई चढ़ाई भौंह...।—रत्नाकर। २. ठहरना। ३. शांत होना। |
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धिषण :
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पुं० [सं०√धृष् (दबाना)+क्यु—अन, धिषादेश] १. बृहस्पति। २. ब्रह्मा। ३. विष्णु। ४. गुरु। शिक्षक। |
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धिषणा :
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स्त्री० [सं० धिषण+टाप्] १. बुद्धि। अक्ल। २. प्रशंसा। स्तुति। ३. वाकशक्ति। वाणी। ४. पृथ्वी। ५. जगह। स्थान। |
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धिषणाधिप :
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पुं० [सं० धिषणा-अधिप ष० त०] बृहस्पति। |
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धिष्ट्य :
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पुं० [सं०=धिष्ण्य नि० णकोट] १. स्थान। जगह। २. घर। मकान। ३. नक्षत्र। ४. अग्नि। आग। ५. बल। शक्ति। ६. शुक्राचार्य का एक नाम। |
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धिष्ण्य :
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पुं० [सं०√धृष्+ण्य नि० ऋ को इ] १. जगह। स्थान। २. घर। मकान ३. अग्नि। आग। ४. नक्षत्र। ५. शक्ति। ६. शुक्र ग्रह। ७. शुक्राचार्य। ८. तारा। ९.एक प्रकार की उल्का। |
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